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5 Nov 2024, Tue

प्लास्टिक महामारी को समाप्त करने के लिए प्लास्टिक सड़क क्रांति

प्रभात पांडेय

प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने में सरकार लगातार प्रयास कर रही है। मंगलवार को पेयजल और स्वच्छता विभाग के सचिव विनी महाजन ने मीडिया को बताया कि अब तक 40,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण प्लास्टिक कचरे से किया गया है। जिसमें से 13,000 किलोमीटर का निर्माण पिछले दो सालों में पूरा हुआ है। महाजन ने बताया कि स्वच्छता अभियान के तहत 55 प्रतिशत से अधिक गांवों को ‘ओडीएफ प्लस मॉडल’ घोषित किया गया है। साथ ही, 5 लाख से अधिक कचरा संग्रहण वाहन काम कर रहे हैं, और ग्रे-वॉटर तथा प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। यदि प्लास्टिक कचरे का उपयोग आवश्यक बुनियादी ढांचे को बनाने में किया जा सकता हो तो इससे पृथ्वी को साफ रखने में योगदान मिलेगा। प्लास्टिक कचरे के साथ बनी सड़क को केवल तारकोल वाली सड़क के मुकाबले अधिक टिकाऊ और मजबूत माना गया है।
प्लास्टिक धीरे-धीरे सभी मानव आवश्यकताओं का एक अभिन्न अंग बन गया है। प्लास्टिक कैरी बैग, पैकेजिंग सामग्री, बोतलें, कप, और विभिन्न अन्य वस्तुओं ने धीरे-धीरे प्लास्टिक के फायदों के कारण अन्य सामग्रियों से बनी हर चीज को बदल दिया है। प्लास्टिक टिकाऊ, उत्पादन में आसान, हल्का, अटूट, गंधहीन और रासायनिक प्रतिरोधी होता है।
प्लास्टिक को केवल 3-4 बार ही रिसाइकिल किया जा सकता है और रिसाइकिल करने के लिए प्लास्टिक को पिघलाने से अत्यधिक जहरीले धुएं निकलते हैं। नवंबर 2015 में सरकार के एक आदेश ने देश के सभी रोड डेवलपर्स के लिए सड़क निर्माण के लिए बिटुमिनस मिक्स के साथ बेकार प्लास्टिक का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया था। ऐसा भारत में प्लास्टिक कचरे के निपटान की बढ़ती समस्या को दूर करने के लिए किया गया।
पूरे दक्षिण एशिया के तेजी से वृद्धि कर रहे कई विकासशील देशों में, विकास एजेंडा के लिए महत्वपूर्ण, ठोस पक्की सड़कों का अब भी अभाव है। सड़कें आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों के साथ ही साथ व्यापार, उत्पादकों को उपभोक्ताओं से, लोगों को नौकरी से, बच्चों को स्कूल से और रोगियों को अस्पतालों से जोड़ने में केंद्रीय स्थान रखती हैं, और इस तरह आर्थिक गतिविधियां बढ़ाती हैं और गरीबी घटाती हैं। यदि आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जा सकता है, तो हम नागरिकों को परिवहन उपलब्ध करा सकते हैं और अपने ग्रह को स्वच्छ रखने में योगदान दे सकते हैं।
सड़क निर्माण में कचरे में निकलने वाले प्लास्टिक का उपयोग करने से सड़क मजबूत होने के साथ इसकी लाइफ भी अधिक बढ़ जाएगी। प्लास्टिक कचरे से बनी सड़क पानी कम सोखेगी। इस तकनीक का सबसे पहले उपयोग इटली व जर्मनी ने किया। भारत में इसकी शुरुआत वर्ष 2013 में केरल, हैदराबाद जैसे क्षेत्रों में की गई। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी इसकी शुरुआत की गई थी।
भारत सरकार सर्वे के अनुसार निगम क्षेत्र से हर दिन 926 मिट्रिक टन कचरा हर दिन निकलता है। इसमें 600 मिट्रिक टन कचरा बैरिया स्थित डंपिंग यार्ड ले जाया जाता है। मानक के अनुसार 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाला शहर प्रति व्यक्ति हर दिन 250 ग्राम से 300 ग्राम कचरा निकालते हैं। साल 2040 तक पूरी दुनिया के पर्यावरण में 1।3 अरब टन प्लास्टिक जमा हो जाएगा। खुद भारत ही हर साल 33 लाख टन से अधिक प्लास्टिक पैदा करता है। कचरे में काफी मात्रा में प्लास्टिक और पॉलिथीन पाया जाता है। कचरे से प्लास्टिक पदार्थ को अलग निकाला जाएगा और उससे प्रोसेसिंग कर सड़क बनाने में उपयोग किया जाएगा।
इतना ज़्यादा प्लास्टिक का पैदा होना ही वासुदेवन के इस प्रयोग की प्रेरणा बन गया। इसी ने उन्हें सड़क बनाने में प्लास्टिक के इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया। दरअसल सड़क बनाने में प्लास्टिक का इस्तेमाल की प्रक्रिया बेहद सरल है। इसके लिए ज़्यादा तकनीकी तामझाम की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसमें प्लास्टिक कचरे के टुकड़े सड़क बनाने के लिए डाली गई गिट्टियों (पत्थर के टुकड़े) और रेत पर बिछा दी जाती हैं।
इसके बाद इसे 170 डिग्री सेंटिग्रेड का ताप दिया जाता है, इससे यह प्लास्टिक कचरा पूरी तरह पिघल जाता है। इस पिघले प्लास्टिक की कोटिंग सड़क पर हो जाती है। इसके ऊपर गर्म कोलतार बिछा दिया जाता है। फिर रेत, गिट्टियों और यह पिघला हुआ प्लास्टिक कचरा ठोस शक्ल अख़्तियार कर लेता है। इस तरह यह मिक्सचर मुकम्मल हो जाता है। सड़क बनाने के मिक्सचर में प्लास्टिक का इस्तेमाल इसके टूटने की गति धीमी कर देता है। साथ ही इसमें गड्ढे भी कम पड़ते हैं।
साल 2015 में भारत सरकार ने पांच लाख से ज़्यादा की आबादी वाले बड़े शहरों के नज़दीक बनाई जाने वाली सड़कों में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल अनिवार्य बना दिया। वासुदेवन ने सड़क बनाने के इस तकनीक का अपना पेटेंट सरकार को मुफ़्त में दे दिया था। एक सिंगल लेन की एक किलोमीटर साधारण सड़क बनाने में दस टन कोलतार की ज़रूरत होती है।
भारत हर साल हजारों किलोमीटर सड़क बनाता है इसलिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ रहा है। अब तक प्लास्टिक-तार की 2,500 किलोमीटर सड़क बनाई जा चुकी है।
त्यागराजार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के केमिस्ट्री के प्रोफे़सर राजगोपालन वासुदेवन कहते हैं, ‘प्लास्टिक-तार से बनी सड़कों में भारी वजन और हैवी ट्रैफिक सहने की क्षमता होती है। इस पर बारिश के पानी या जल-जमाव का कोई असर नहीं होता।’
दुनिया भर में अब प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाने की कई परियोजनाएं चल रही हैं। केमिकल फ़र्म डाउ पॉलिएथिलिन वाली री-साइकिल्ड प्लास्टिक का इस्तेमाल अमेरिका और एशिया प्रशांत क्षेत्र की अपनी परियोजनाओं में कर रही है।
नीदरलैंड में 2018 में दुनिया में पहली बार रीसाइकिल की हुई प्लास्टिक की सड़क बनी। इसे बनाने वाली कंपनी प्लास्टिकरोड ने स्थानीय स्तर पर जमा किए गए प्लास्टिक की पहले छंटाई की। फिर इसके टुकड़े काट कर और इसे साफ कर प्रोपिलिन निकाला गया। यह प्लास्टिक अमूमन फेस्टिवल मग, कॉस्मेटिक पैकेजिंग, बोतलों के ढक्कनों और प्लास्टिक स्ट्रॉ में मिलता है।
भारत में दुनिया के सबसे बड़े सड़क नेटवर्कों में से एक मौजूद है। इसमें हर साल 10 हजार किलोमीटर सड़क और जुड़ रही है। लिहाजा यहां सड़क बनाने में प्लास्टिक के इस्तेमाल की संभावनाएं भी काफी अच्छी है। हालांकि यह तकनीक भारत और पूरी दुनिया के लिए अभी थोड़ी नई ही है। लेकिन पूरा भरोसा है कि प्लास्टिक की सड़कों को लोकप्रियता मिलती रहेगी। इन सड़कों को लोग न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से पसंद करेंगे बल्कि ये लंबे समय तक टिकने और ज़्यादा दबाव झेलने वाली सड़कों के तौर पर जानी जाएंगीं।

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