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12 Nov 2025, Wed

मुफ्त की रेवड़ियां और पेंशन का बोझ… राज्यों का खजाना कैसे हो रहा है खाली? नई रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

राज्यों की आर्थिक सेहत को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेस 2025’ जारी की है, जो राज्यों के सरकारी खजाने की स्थिति का पूरा हाल बयां करती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कई राज्य राजस्व घाटे में हैं, यानी उनकी आमदनी उनके रोज़मर्रा के खर्च से कम हो गई है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि विकास परियोजनाओं के लिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़ रहा है, जो एक चिंताजनक संकेत है।
रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों की वित्तीय तंगी के पीछे कई वजहें हैं। राज्यों की आय का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और पुराने कर्ज़ के ब्याज में ही चला जाता है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में महिलाओं को सीधे नकद राशि देने वाली अनकंडीशनल कैश ट्रांसफर योजनाओं की संख्या भी बढ़ी है, जिससे खजाने पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है। पीआरएस की रिपोर्ट यह भी बताती है कि किस तरह राज्यों की तिजोरियां लगातार दबाव में हैं, वे कर्ज़ के जाल में फंस रहे हैं और उनकी केंद्र पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है।
क्यों खाली हो रहा है राज्यों का खजाना?
रिपोर्ट का सबसे बड़ा खुलासा यही है कि कई राज्यों का राजस्व घाटा बना हुआ है। 2023-24 में यह GSDP का 0.4 प्रतिशत था। इसका सीधा मतलब यह है कि राज्य, कमाई से ज्यादा खर्च कर रहे हैं, और यह खर्च भी रोजमर्रा के कामों (जैसे वेतन, पेंशन) पर हो रहा है, न कि किसी स्थायी संपत्ति (जैसे स्कूल, अस्पताल, सड़क) के निर्माण पर। चिंता की बात यह है कि राज्य अपने बजट अनुमानों से औसतन 10 प्रतिशत कम राजस्व जुटा पाए और 9 प्रतिशत कम खर्च कर पाए। सबसे ज्यादा कटौती पूंजीगत व्यय में हुई, जो 20 प्रतिशत तक कम रहा। यानी, जब पैसे की कमी हुई, तो सबसे पहले विकास कार्यों पर ही कैंची चली।
राज्यों की खुद की कमाई भी बहुत मामूली है, जो GSDP का सिर्फ 6।8 प्रतिशत है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा SGST का है। वहीं, जीएसटी लागू होने के बाद भी, इससे होने वाली कमाई उन टैक्सों से कम है, जिन्हें हटाकर इसे लाया गया था। 2015-16 में पुराने टैक्सों से GDP का 6.5% राजस्व आता था, जो 2023-24 में GST से घटकर 5.5% रह गया है।
रेवड़ियां, सब्सिडी और कर्ज का बढ़ता बोझ
राज्यों के खजाने पर सबसे बड़ा बोझ ‘प्रतिबद्ध व्यय’ का है। 2023-24 में राज्यों ने अपनी कुल राजस्व कमाई का 62 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी पर खर्च कर दिया। इसमें से भी 53% हिस्सा सिर्फ वेतन, पेंशन और ब्याज में चला गया। पंजाब की हालत सबसे खराब है, जिसने अपनी कुल राजस्व कमाई से भी ज्यादा इनपर खर्च कर दिया। हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और हरियाणा ने भी 70 प्रतिशत से ज्यादा खर्च किया। ऐसे में विकास कार्यों के लिए पैसा बचेगा कहां से? ऊपर से सब्सिडी का बिल लगातार बढ़ रहा है। 24 राज्यों ने 2023-24 में 3.18 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च किए, जिसका लगभग आधा हिस्सा अकेले बिजली सेक्टर को गया। आरबीआई और वित्त आयोग लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि सब्सिडी का यह बढ़ता बोझ वित्तीय स्थिरता के लिए ठीक नहीं है। इसी में एक नया खर्च जुड़ा है, महिलाओं को नकद हस्तांतरण का। 2025-26 के बजट के अनुसार, 12 राज्य इन योजनाओं पर 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च करेंगे। इनमें से कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्य, अगर यह खर्च न करते, तो वे राजस्व घाटे की जगह सरप्लस में होते। आरबीआई की चेतावनी है कि इस तरह के खर्च से उत्पादक कार्यों के लिए पैसा कम पड़ सकता है। इन सब का नतीजा यह है कि राज्यों पर कर्ज का पहाड़ खड़ा हो गया है। मार्च 2025 तक राज्यों का कुल बकाया कर्ज GSDP का 27.5 प्रतिशत हो गया, जबकि FRBM कानून के तहत यह सीमा 20 प्रतिशत होनी चाहिए। सिर्फ गुजरात, महाराष्ट्र और ओडिशा ही इस सीमा के अंदर हैं।
केंद्र पर बढ़ रही राज्यों की निर्भरता
अपनी कमाई कम होने के कारण राज्यों की निर्भरता केंद्र सरकार पर बहुत बढ़ गई है। खासकर पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य अपनी कुल प्राप्तियों का 68 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय ट्रांसफर से पाते हैं। हालांकि, केंद्र ने राज्यों को बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 50-साल के ब्याज-मुक्त ऋण (SASCI) की एक योजना 2020-21 में शुरू की थी। इस योजना के तहत राज्यों को 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मिले हैं। 2024-25 में राज्यों के कुल पूंजीगत खर्च का 19 प्रतिशत हिस्सा इसी लोन से आने की उम्मीद है। लेकिन इसमें भी एक पेंच है। केंद्र से मिलने वाले ‘अनटाइड’ फंड में कमी आई है। यह वह पैसा होता है जिसे राज्य अपनी मर्जी से कहीं भी खर्च कर सकते हैं। 14वें वित्त आयोग की तुलना में 15वें वित्त आयोग में यह हिस्सा 68% से घटकर 64% रह गया। यहां तक कि SASCI लोन में भी, बिना शर्त वाला हिस्सा 80% से घटाकर 38% कर दिया गया है। इसका मतलब है कि केंद्र अब पैसा तो दे रहा है, लेकिन साथ में यह भी बता रहा है कि उसे खर्च कहां करना है। इससे राज्यों की अपनी नीतियां बनाने की स्वतंत्रता कम हो रही है।
अमीर और गरीब राज्यों के बीच की खाई और गहरी होती जा रही
रिपोर्ट का एक सबसे चिंताजनक पहलू अमीर और गरीब राज्यों के बीच बढ़ती आर्थिक खाई है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे उच्च आय वाले राज्य, अपने करों से ज्यादा राजस्व जुटाते हैं और प्रति व्यक्ति अधिक खर्च भी करते हैं। इससे वे विकास के एक अच्छे चक्र में हैं। वहीं दूसरी ओर, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे कम आय वाले राज्य, सीमित राजस्व और कम निवेश के एक दुष्चक्र में फंसे हुए हैं।

By Aryavartkranti Bureau

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