रिटेल महंगाई के आंकड़ें लगातार तीसरे महीने बढ़े हैं. अक्टूबर के महीने में रिटेल महंगाई 14 महीनों की ऊंचाई पर पहुंच गई है। खास बात तो ये है कि इस बात का अंदाजा किसी को भी नहीं था कि रिटेल महंगाई का आंकड़ा 6 फीसदी को भी पार कर जाएगा। जोकि आरबीआई के टॉलरेंस लेवल से ज्यादा है। जिसकी वजह से चिंता की लकीरें और भी ज्यादा बढ़ गई है। क्योंकि महंगाई की मार आम लोगों की रोजमर्रा की जरुरतों के साथ महीने में एक बार जाने वाली लोन ईएमआई पर भी डाल रही है।
बढ़ती महंगाई का असर आने वाले दिनों में लोन ईएमआई में साफ देखने को मिल सकता है। अभी तक आरबीआई ने रेपो रेट को फ्रीज करके रखा है। वहीं अक्टूबर के महीने में रुख में भी बदलाव किया है, लेकिन महंगाई के आंकड़ें आरबीआई के लिए भी चिंता का विषय हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि दिसंबर के तो क्या मौजूदा वित्त वर्ष की आखिरी मीटिंग यानी फरवरी 2025 में भी आरबीआई के लिए पॉलिसी रेट में कटौती करना मुश्किल हो सकता है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिा आम लोगों को महंगाई की दोहरी मार कैसे पड़ रही है?
लगातार बढ़ती महंगाई
जुलाई के महीने में देश की रिटेल महंगाई 5 साल के लोअर लेवल यानी 3.60 फीसदी पर आई थी। अगस्त में इसमें मामूली इजाफा देखने को मिला और 3.65 फीसदी हो गई। सितंबर के महीने में रिटेल महंगाई में जबरदस्त जंप देखने को मिला और आंकड़ा 5.49 फीसदी पर पर पहुंच गया। अक्टूबर की रिटेल महंगाई का अनुमान ज्यादा तो लगाया जा रहा था, लेकिन ये अनुमान 6 फीसदी से कम यानी 5.8 से 5.9 फीसदी के बीच था, जो 14 महीनों के हाई पर था. लेकिन साइकोलॉजीकल रूप से 6 फीसदी से कम था। जो आंकड़ें सामने आए, उसने उन तमाम अनुमानों को धराशाई दिया।
देश की रिटेल महंगाई 6.21 फीसदी पर आ गई। जो देश के लिए एक तगड़ा झटका है। मतलब साफ है कि देश की रिटेल महंगाई में जुलाई महीने के बाद यानी 3 महीने में 72 फीसदी से ज्यादा का इजाफा देखने को मिल चुका है। वहीं बात शहरी और ग्रामीण महंगाई की बात करें तो इसमें भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर के महीने में शहरी महंगाई 5.62 फीसदी देखने को मिली, जबकि ग्रामीण महंगाई का आंकड़ा 6.68 फीसदी पर आ गया।
फूड इंफ्लेशन बना सबसे बड़ा दुश्मन
ओवरऑल महंगाई में इजाफे सबसे बड़ा योगदान फूड इंफ्लेशन का बताया जा रहा है, जोकि अक्टूबर के महीने में 11 फीसदी के करीब पहुंच गया है। जिसमें सब्जियों की महंगाई 57 महीने के ऊंचाई पर पहुंच गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर के महीने में सब्जियों की महंगाई 42.2 फीसदी देखने को मिली है। सब्जियों में भी टमाटर और प्याज की कीमतों ने सबसे ज्यादा असर डाला है। खासकर प्याज की कीमतें अक्टूबर के महीने में त्योहारी महीने अक्टूबर के महीने में 7वें आसमान पर थीं।
वहीं दूसरी ओर दूसरी सब्जियों के दाम औसतन 70 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच देखने को मिल रही थी। जिसका असर महंगाई के रूप में देखने को मिला। ये हालात तब थे जब अक्टूबर के महीने में ही सरकारी संस्थाओं ने प्याज को सस्ती की कीमतों यानी 35 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचना शुरू कर दिया था और सरकार की ओर से प्याज का बफर स्टॉक बाहर निकाला था। ऐसे में महंगाई का आंकड़ा आरबीआई के टॉलरेंस लेवल के पार चला जाना काफी कुछ बयां कर रहा है।
ये सामान भी हुए महंगे
सिर्फ सब्जियां ही महंगी नहीं हुई बल्कि महंगाई को बढ़ाने में दालों, फलों और दूसरे सामान की बढ़ती कीमतों का भी हाथ रहा है।
अक्टूबर के महीने में अनाज की महंगाई में इजाफा देखने को मिला और आंकड़ा 6.94 फीसदी पर पहुंच गया।
खाने के तेल की कीमतों में भी तेजी देखने को मिली और इसकी महंगाई में तेजी देखने को मिली और आंकड़ा 9.61 फीसदी देखने को मिला।
अगर बात फलों की करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार फ्रूट में अक्टूबर के महीने में महंगाई 8.43 फीसदी देखने को मिली।
अक्टूबर के महीने में दालों पर भी महंगाई की गाज गिरती हुई दिखाई दी और आंकड़ा 7.43 फीसदी देखने को मिला।
इसका मतलब है कि फूड एंड ब्रेवरेज में कुल महंगाई का आंकड़ा 9.69 फीसदी देखने को मिला है, जोकि काफी बड़ा है।
लोन ईएमआई पर क्या पड़ेगा असर?
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब महंगाई का आंकड़ा बढ़ रहा है, ऐसे में आरबीआई के लिए सबसे बड़ी मुसीबत ये है कि आखिर लोन ईएमआई को कैसे कम करें। सबसे पहले आरबीआई का फोकस महंगाई को टॉलरेंस लेवल से नीचे लाना होगा। साथ ही उस स्तर पर लाकर लगातार बने रहना होगा जहां ये लगे कि अब लोन ईएमआई को कम किया जा सकता है। जिसमें वक्त लग सकता है। वास्तव में जुलाई और अगस्त के महीने में भले ही महंगाई दर 4 फीसदी से नीचे रही हो, लेकिन आरबीआई एमपीसी के लिए फूड इंफ्लेशन तब भी चिंता का सबब बनी हुई थी।
भले ही जुलाई और अगस्त के महीने में ये आंकड़ा 6 फीसदी से कम था, लेकिन सितंबर के महीने में ये आंकड़ा एक बार फिर से 9 फीसदी से ऊपर कूद गया। अक्टूबर महीने की पॉलिसी मीटिंग में आरबीआई गवर्नर ने इस बात का जिक्र भी किया था कि फूड इंफ्लेशन अभी काफी चिंता का विषय है। जिसे आने वाले दिनों में देखने की जरुरत है। ऐसे में पॉलिसी को रेट को आने वाले दिनों में फ्रीज रखने के अलावा आरबीआई के पास कोई दूसरा चारा नहीं है।
कब तक ब्याज दरें रह सकती है फ्रीज?
वैसे इस बारे में कई जानकारों की ओर से भविष्यवाणी की जा चुकी है। कुछ एक्सपर्ट ने अनुमान लगाया था कि अक्टूबर के महीने में रेपो रेट में कटौती की जा सकती है। ये प्रिडिक्शन ऐसे समय पर किया गया था, जब आरबीआई ने अक्टूबर की पॉलिसी मीटिंग में अपने रुख में बदलाव किया था और संकेत दिया था कि ब्याज दरों में आने वाले दिनों में कटौती जा सकती है।
अब जब अक्टूबर महीने के महंगाई के आंकड़े आ गए हैं और नवंबर महीने के लिए भी अनुमान 6 फीसदी के आसपास का लगाया जा रहा है तो ऐसे में दिसंबर के महीने में पॉलिसी रेट का कम होना मुश्किल दिखाई दे रहा है। कई जानकारों का यहां तक कहना है कि मौजूदा वित्त वर्ष की आखिरी मीटिंग यानी फरवरी 2025 में भी ब्याज दरों में कटौती होना मुश्किल है। ऐसे में आम लोगों को अपनी लोन ईएमआई को कम होने का थोड़ा लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।