साल 2028 तक दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के एकमात्र ऊंचे टैक्सीवे पर विमानों के नीचे एक एयर ट्रेन चलने लगेगी। दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (DIAL) ने 7।7 किलोमीटर लंबी ऑटोमेटेड पीपल मूवर (APM) ट्रेन बनाने के लिए टेंडर जारी किया है। यह एयर ट्रेन टर्मिनल 2 और 3 को टर्मिनल 1 से जोड़ेगी। यह ट्रेन रनवे 28 के नीचे से होकर गुजरेगी।
एयर ट्रेन का अधिकतर हिस्सा ऊंचा होगा। इसमें 5।7 किमी ऊंचा रास्ता होगा और 2 किमी ज़मीन पर होगा। ज़मीन वाला हिस्सा टर्मिनल 1 के पास होगा और ऊंचे टैक्सीवे के नीचे होगा। कार्गो स्टेशन पर एक स्काईवॉक बनेगा, जो एयर ट्रेन को कार्गो टर्मिनल से जोड़ेगा।
कितनी है लागत?
DIAL ने खर्च कम रखने के लिए ट्रेन को जमीन के नीचे नहीं बनाने का फैसला किया है। भारत में ऊंची ट्रेन बनाने की औसत लागत 250-300 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर होती है। जब ट्रेन जमीन पर बनाई जाती है, तो इसकी लागत 150-200 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर होती है। अगर ट्रेन को जमीन के नीचे बनाया जाए, तो लागत 500-600 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर होती है। इसमें ट्रेन बनाने, सिग्नल, बिजली और बाकी सभी कामों की लागत भी शामिल है।
अनुमान है कि इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 1,500-1,600 करोड़ रुपये हो सकती है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उड्डयन मंत्रालय ने कहा था कि इस प्रोजेक्ट के लिए यात्रियों से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं लिया जाएगा। पहले हवाई अड्डे को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए कहा गया, और बाद में पैसे वसूलने की सलाह दी गई।
कितनी होगी कीमत?
सरकार ने पहले एयर ट्रेन के लिए यात्रियों से पैसे लेने की योजना बनाई थी, लेकिन आमतौर पर दुनिया में एयर ट्रेनें मुफ्त होती हैं। इससे खर्च एयरलाइंस या दूसरी जगहों से वसूला जाता है। जैसे मुंबई हवाई अड्डे पर पहले घरेलू उड़ान के लिए 20 रुपये और अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए 120 रुपये का चार्ज लिया जाता था, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। इसलिए, DIAL को खर्च और संभावित कमाई का ध्यान रखते हुए बोलियों का सही मूल्यांकन करना होगा ताकि एयर ट्रेन का संचालन ठीक से हो सके।