बेंगलुरु। विपक्ष एक ओर पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए संसद के विशेष सत्र की मांग कर रही है तो सरकार की ओर से इस मांग पर कुछ खास नहीं कहा गया है। लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर की समीक्षा के लिए किसी तरह की समिति के गठन पर विचार नहीं किया जा रहा है।
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कारगिल युद्ध की समीक्षा के लिए जिस तरह की समिति गठित की गई थी, उस तरह से कोई समिति पहलगाम या ऑपरेशन सिंदूर को लेकर गठित नहीं की जाएगी। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से ये मांग की जा रही थी कि मोदी सरकार पहलगाम की जांच के लिए ठीक वैसी ही समिति बनाए जैसी वाजपेयी सरकार के समय 1999 में कारगिल युद्ध के खत्म होने के 3 दिनों के बाद सुब्रहमण्यम की अध्यक्षता में बनाई थी।
कारिगल युद्ध के बाद गठित की गई थी समिति
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कल मंगलवार को पहलगाम आतंकी हमले को लेकर सवाल उठाए थे और इसे आंतरिक सुरक्षा बहुत बड़ी नाकामी करार दिया था। ममता ने कल मंगलवार को कहा कि बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार देश के लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में ‘नाकाम’ रही है और उससे इस्तीफा देने की मांग की।
कारगिल युद्ध के खत्म होने के बाद सुब्रह्मण्यम समिति की रिपोर्ट पर आगे की पड़ताल के लिए तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह (GoM) गठित किया गया था। इस समूह में तत्कालीन वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री भी शामिल थे।
GoM ने की 27 बैठकें, बनाए 4 टास्क फोर्स
आडवाणी की अगुवाई वाले जीओएम ने विस्तार से देश की सुरक्षा और खुफिया ढांचे की पड़ताल की थी। बताया जाता है कि जीओएम ने कुल 27 बैठकें की थीं और चार अलग-अलग टास्क फोर्स गठित की गई थी। ये टास्क फोर्स खुफिया तंत्र के साथ-साथ सीमा प्रबंधन, आंतरिक सुरक्षा, और रक्षा प्रबंधन के लिए बनाई गई थी और इनमें विशेषज्ञों को शामिल किया गया था।
11 मई 2001 को कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति ने आडवाणी की अध्यक्षता वाली जीओएम की सभी सिफारिशों को मंजूरी दी थी जिनमें चीफ ऑफ डिफेंस (सीडीएस) की नियुक्ति करना भी शामिल था। देश के रक्षा तंत्र, खुफिया तंत्र की मजबूती के लिए कई कदम उठाए गए। इन्हीं सिफारिशों में यह बात भी शामिल की गई थी कि भविष्य में कारगिल जैसै हालात बनने पर क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
लिहाजा, ऑपरेशन सिंदूर के बाद अब नए सिरे से किसी समिति के गठन का कोई औचित्य ही नहीं है। सरकार इन्हीं सिफारिशों को ध्यान में रख कर आगे बढ़ रही है।
पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर की समीक्षा के लिए नहीं बनेगी समिति, आखिर कहां से आई थी कमेठी के गठन की बात?
