मॉस्को, एजेंसी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रुख से घबराकर अब यूक्रेन के सपोर्ट में रहने वाले ताकतवर देशों में से एक ब्रिटेन ने एक अहम फैसला किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन ने यूक्रेन को जमीनी सैन्य मदद देने से हाथ खींच लिए हैं।
रिपोर्ट की मानें तो, ब्रिटेन अब हजारों सैनिकों को यूक्रेन भेजने की योजना को रद्द कर सकता है। द टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि लंदन अब इस कदम को बेहद जोखिम भरा मानता है।
सीजफायर की उम्मीद में बदली प्राथमिकता
ब्रिटेन को डर है कि अगर रूस के साथ किसी युद्धविराम समझौते की स्थिति बनती है, तो जमीनी बलों की तैनाती एक बड़े संघर्ष को जन्म दे सकती है। ऐसे में ब्रिटेन और यूरोपीय देश अब यूक्रेन के शहरों, बंदरगाहों और परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के लिए जमीनी बल नहीं भेजेंगे। इसके बजाय अब सैन्य समर्थन का केंद्र यूक्रेन की सेना के पुनर्निर्माण और उसे वायु तथा समुद्री सुरक्षा से लैस करने पर होगा।
प्रशिक्षकों की होगी सीमित तैनाती
हालांकि ब्रिटिश और फ्रेंच सैन्य प्रशिक्षकों को यूक्रेन के पश्चिमी हिस्सों में भेजने की योजना अभी भी बरकरार है। लेकिन ये प्रशिक्षक फ्रंटलाइन से दूर रहेंगे और न ही वे यूक्रेनी सैनिकों के साथ मोर्चे पर होंगे, न ही किसी प्रमुख ठिकाने की सुरक्षा करेंगे। ये एक तरह से सैन्य उपस्थिति की औपचारिकता भर निभाई जाएगी।
तुर्की निभाएगा समुद्री सुरक्षा में भूमिका
इस पूरी रणनीति में तुर्की को समुद्री सुरक्षा की ज़िम्मेदारी देने की बात भी कही गई है। इससे रूस को ये संकेत दिया जा सकता है कि पश्चिमी देश अब सीधे युद्ध में उलझने के बजाय समझौते की संभावनाओं को टटोल रहे हैं।
स्टारमर सरकार का ‘डिप्लोमैटिक बैलेंस’
हाल ही में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के प्रेस सचिव ने कहा था कि यूक्रेन को अपना भविष्य खुद तय करना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि ब्रिटेन यूक्रेन का साथ कभी नहीं छोड़ेगा। लेकिन अमेरिका की तरह अब ब्रिटेन भी स्पष्ट रूप से यह कहने लगा है कि अगर रूस के साथ कोई शांति समझौता नहीं होता, तो वे पीछे हट जाएंगे। इस बदले हुए रुख से साफ है कि यूक्रेन को अब मैदान में अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी क्योंकि दुनिया के बड़े ताकतवर देश अब अपने सैनिक नहीं, सिर्फ सलाह भेजने को तैयार हैं।